लेखन/संकलन: त्रिलोक चन्द्र भट्ट
पर्वतारोहण में उत्तराखण्ड का नाम रोशन करने वाली , पहाड़ सा मजबूत हौंसला लेकर पहाड़ की महिलाओं ने उन असम्भव कार्यों को भी सम्भव कर दिखाया है जहाँ किसी समय केवल पुरुषों की तूती बोला करती थी। सागर की गहराईयों से लेकर हिमालय की चोटियों तक परचम लहराने वाली पहाड़ की महिलाओं ने जिस तरह उत्तराखण्ड को गौरान्वित किया है, उन्हीं में से पद्मश्री, अर्जुन अवार्ड और एडवेंचर नेशनल अवार्ड जैसे ढेरों सम्मान प्राप्त करने वाली महिलाओं में चन्द्रप्रभा ऐतवाल का नाम बड़े गौरव से लिया जाता है।
24 दिसम्बर सन्ा 1941 को उत्तराखण्ड के पिथौरागढ़ जनपद के धारचूला सीमान्त क्षेत्र में जन्मी चन्द्रप्रभा ने दुर्गम पहाड़ी क्षेत्रों के जन-जीवन और उनकी समस्याओं को बहुत नजदीक से देखा। पिछड़े और अविकसित क्षेत्र के निवासियों के जीवन में प्रतिदिन आने वाली समस्याओं से रूबरू होते-होते वे स्वयं भी हर कठिनाई से संघर्ष करने की अभ्यस्त हो गयी। कठिन परिस्थतियों से संघर्ष की यही अभ्यस्तता उन्हें नन्दा देवी, कामेट, केदार डोम, जैसे शिखरों के सपफल आरोहण की ओर ले गयी।
अर्थशास्त्र से एम0ए0, सी0पी0एड0 तथा आई0टी0आई0 डिप्लोमा होल्डर इस बाला ने 1966 से 20 वर्ष तक अध्यापन कार्य किया। तदुपरान्त 1986 से उत्तरकाशी में ऑफीसर ऑन स्पेशल ड्यूटी (एडवेंचर) रही। 1972 में बेसिक और 1975 में एडवान्स माउन्टेनियरिंग कोर्स एन0आई0एम0 उत्तरकाशी से तथा 1979 में बेसिक और 1980 में इण्टरमीडिएट स्कींग कोर्स गुलमर्ग के इंडियन इन्स्टीयूट ऑफ स्कींग एण्ड माउन्टेनियरिंग नामक संस्थान से पूरा किया। चन्द्रप्रभा ऐतवाल ने 1978 से 1983 के बीच ‘निम उत्तरकाशी में प्रशिक्षण कार्य किया। प्रशिक्षाणावधि में ही उन्होंने कई पर्वतों की चोटियों पर सफल आरोहण किया। उन्होंने 18, 130 फीट ऊँचे बेबी शिवलिंग पर 1972 में सफल आरोहण किया। इसके बाद 20,720 फीट ऊँचे बन्दरपुंछ पर 1975 में, 22, 410 फीट ऊँचे केदारडोम, 25, 447 फीट ऊँचे कामेट पर 1976 में, 20, 556 फीट ऊँचे ब्लैकपीक पर 1980 तथा 25, 654 फीट ऊँचे नन्दा देवी शिखर पर 1981 में आरोहण किया। इन अभियानों सहित अनेक अन्य अभियानों में भी वे प्रशिक्षक, लीडर तथा सदस्य की हैसियत से शामिल हुई। वे 1984 में इंडियन माउन्टेनयरिंग फाउंडेशन द्वारा प्रायोजित एवरेस्ट अभियान में 27, 750 फीट तक की ऊँचाई तक पहुँची। 1993 में इंडो-नेपाली साक्षा अभियान के दौरान एवरेस्ट पर 24, 000 फीट तक की ऊँचाई तक पहुँची। कई देशी-विदेशी पर्वतारोहण अभियानों में वे सदस्या तो रही ही, यूनिसेफ द्वारा आयोजित सी0ए0पी0ई0 के कई कार्यक्रमों में सक्रिय भाग भी लिया। इसके अतिरिक्त रिवर राफ्टिंग और ट्रैकिंग में भी इन्होंने कीर्तिमान बनाया। ट्रैकिंग में तिब्बत, नेपाल, जापान, न्यूजीलैण्ड, कश्मीर, हिमाचल प्रदेश गढ़वाल तथा कुमाऊँ के क्षेत्रों में कीर्तिमान स्थापित किया।
इनके साहस और लगन को देखते हुए इनको ढेरों पुरस्कारों से नवाजा गया। 1981 में अर्जुन एवार्ड, 1982 टीचर्स डे सर्टिफिकेट, 1984 में उच्च निदेशालय द्वारा स्वर्ण पदक और इंडियन माउन्टेनियरिंग फाउंडेशन द्वारा सिल्वर मैडल, 1990 में भारत सरकार द्वारा पद्मश्री, 1993 में रंग रत्न एवार्ड और 1994 में नेशनल एडवेंचर एवार्ड से सम्मानित किया गया। सत्यता तो यह है कि अवार्ड और सम्मान बुलन्द हौंसलों का मापन नहीं अपितु प्रतिभा की पहचान मात्र हुआ करते हैं।
पहाड़ की बेटी चन्द्रप्रभा ऐतवाल के, पहाड़ से हौसले ने दिलाये ढेरों राष्ट्रीय सम्मान
