- ख़ास बातें
- पश्चिमी देशों की भाषा, भोजन और भेष पर कड़ा प्रहार
- मिलेट्स आधारित खाद्य पदार्थों को भोजन में करें शामिल
- दुनिया भर में सस्टनेबल डवलपमेंट वक्त की दरकार
- जल, जंगल और जमीन का संरक्षण एक बड़ी चुनौती
- जीईपी लागू करने वाला देहरादून विश्व का पहला शहर
जाने-माने पर्यावरणविद् पदमश्री एवम् पदमभूषण डॉ. अनिल प्रकाश जोशी ने पश्चिमी देशों की भाषा, भोजन और भेष पर कड़ा प्रहार करते हुए कहा, हिंदुस्तानी बोलचाल, खानपान और पहनावे का दुनिया में कोई सानी नहीं है। हमें पश्चिम के खाद्यान का मोह छोड़ना होगा और मिलेट्स आधारित खाद्य पदार्थों को अपने भोजन में शामिल करना होगा। अंग्रेजी की वकालत करते हुए बोले, हम भारतीय अंग्रेजी भाषा तो सीखें, लेकिन अंग्रेजी कल्चर से दूर रहें। दुनिया में सस्टनेबल डवलपमेंट वक्त की दरकार है। आज के ओद्यौगिकरण की अंधी दौड़ में प्राकृतिक संसाधनों का दोहन चरम पर है। नतीजतन जल, जंगल और जमीन का संरक्षण एक बड़ी चुनौती है। लोग गांव छोड़कर शहरों की ओर पलायन कर रहे हैं, लेकिन सच्चाई यह है, गांवों के बिना कोई भी देश अस्तित्वहीन है। धरती की हरियाली खत्म हो रही है और धरती कंकरीट के जंगलों में तब्दील होती जा रही है, जिसके परिणामस्वरूप भूमिगत जल स्तर दिन-प्रतिदिन तेजी से नीचे जा रहा है। इसे रोकने के लिए वृक्षारोपण कैंपेन बेहद जरूरी है। हरित क्रांति और श्वेत क्रांति की देन का श्रेय हिमालय को है। डॉ. अनिल जोशी तीर्थंकर महावीर यूनिवर्सिटी, मुरादाबाद की ओर से इकोलॉजी एंड इकोनॉमी इन वन फुटस्टेप पर आयोजित लीडरशिप टॉक सीरीज के सेशन-09 में बतौर की नोट स्पीकर बोल रहे थे। इससे पूर्व डॉ. जोशी के संग-संग टीएमयू के वीसी प्रो. वीके जैन, एग्रीकल्चर के डीन प्रो. प्रवीन कुमार जैन, सीसीएसआईटी के निदेशक प्रो. आरके द्विवेदी, सीटीएलडी के डायरेक्टर डॉ. पंकज कुमार सिंह आदि ने मां सरस्वती के समक्ष दीप प्रज्ज्वलित करके लीडरशिप टॉक सीरीज का शुभारम्भ किया। मुख्य अतिथि का बुके देकर गर्मजोशी से स्वागत किया। अंत में स्मृति चिन्ह देकर सम्मानित किया गया। डॉ. अनिल प्रकाश जोशी ने 130 एकड़ में आच्छादित यूनिवर्सिटी कैंपस का भ्रमण किया। पर्यावरणविद् डॉ. जोशी कैंपस की हरियाली देखकर गदगद नज़र आए। रेन वाटर हार्वेस्टिंग और सीवरेज ट्रीटमेंट प्लांट को देखकर बोले, सच में टीएमयू ने जल संरक्षण को धरातल पर उतारा है। एग्रीकल्चर रिसर्च फॉर्म में स्थित जैन वाटिका को देखा, साथ ही इन पौधों पर क्यूआर कोड देखकर इसे अनूठी पहल बताया। इससे पूर्व उन्होंने जिनालय में जाकर भगवान महावीर के दर्शन भी किए। संचालन असिस्टेंट डायरेक्टर एकेडमिक्स डॉ. नेहा आनन्द ने किया।
जैविक खेती को ही होगा अपनाना
लीडरशिप टॉक में तीर्थंकर महावीर यूनिवर्सिटी के एग्रीकल्चर स्टुडेंट्स के संग सवाल-जवाब का दौर भी चला। बीएससी एग्रीकल्चर के छात्र मुकुंद सिंह ने पूछा, मां गंगा को कैसे संरक्षित करे? लोचन व्यास ने पूछा, प्राकृतिक खेती को कैसे बढ़ावा दें? छात्र उज्ज्वल श्रीवास्तव ने सवाल किया, जोशी सर, पहले आप टीचर थे। फिर प्रकृति के प्रति कब और कैसे उमड़ा? छात्रा अंकिता यादव ने खुद ही सवाल किया और खुद ही जवाब देते हुए कहा, यदि हमें धरती मां के कर्ज को अदा करना है तो हम सब बर्डथे पर केक सेरेमनी के स्थान पर पेड़ लगाएं। स्टुडेंट्स को सवालों के जवाब में डॉ. जोशी बोले, हमारी धमनियों में खून के मानिंद है गंगा। ऐसे में हम सबके संगठित होने पर ही मां गंगा को बचाया जा सकता है। कैमिकल खेती का मोह छोड़ना होगा और जैविक खेती को अपनाना होगा। एक लघु कहानी के जरिए बताया, प्रकृति हमें हवा, पानी आदि फ्री में देती है। अतः हमें प्रकृति के कर्ज को उतारने के लिए इसका संरक्षण करना होगा। लीडरशिप टॉक सीरीज में वीसी प्रो. वीके जैन बोले, ग्लोबल वॉर्मिंग से यूं तो मैं परिचित हूं। आज मैं बोलने नहीं, बल्कि डॉ. जोशी के सारगर्भित विचारों को सुनने और गुनने आया हूं। एग्रीकल्चर कॉलेज के डीन प्रो. प्रवीन जैन ने लीडरशिप टॉक सीरीज के मेहमान डॉ. जोशी का ध्यान आकर्षित करते हुए कहा, बीएससी एग्रीकल्चर के पाठयक्रम में पर्यावरण शामिल है। आपके सारगर्भित संबोधन से अब यूजी और पीजी स्टुडेंट्स पर्यावरण संरक्षण को ओर संजीदगी से लेंगे। लीडरशिप टॉक सीरीज में प्रो. अमित कंसल, डॉ. बलराज सिंह, डॉ. वरुण कुमार सिंह, डॉ. गणेश दत्त भट्ट, डॉ. महेश सिंह, डॉ. सुनील सिंह, डॉ. आशुतोष अवस्थी, डॉ. साकुली सक्सेना, डॉ. जूरी दास, डॉ. चारू बिष्ट, डॉ. सच्चिदानंद सिंह, डॉ. रोहित सिंह, डॉ. निमित तोमर, डॉ. ब्रजपाल सिंह रजावत, डॉ. अमित मौर्या, डॉ. जे. जेम्स आदि मौजूद रहे।
माउंटेन मैन ऑफ इंडिया के नाम से प्रख्यात, ग्रीन एक्टिविस्ट और हिमालयन इन्वायरमेंटल स्टडीज़ एंड कंजर्वेशन ऑर्गेंनाइजेशन- एचईएससीओ के संस्थापक डॉ. जोशी बोले, पर्यावरण संरक्षण की चिंता किसी के जेहन में नहीं है और हम इसके लिए सरकार को दोषी ठहराते हैं। सरकार के संग-संग धरती को स्वस्थ और सुंदर बनाने की जिम्मेदारी हम सबकी है। मानव पैदा होते ही जाने-अनजाने धरती की सेहत से खिलवाड़ करने लगा है, जिसके भयावह नतीजे हम सबके सामने हैं। अगर समय रहते नहीं चेते तो इसके भयावह दुष्परिणााम हमारे सामने होंगे। समय-समय पर नेचर इसका संकेत कोविड-19 सरीखी महामारी, भूकंप, बाढ़, चक्रवाती तूफानों के रूप में देती रहती है। ग्लोबल वॉर्मिंग के परिणामस्वरूप मौसम चक्र बुरी तरह से प्रभावित हो चुका है। साथ ही पश्चिमी देशों के लापरवाह दृष्टिकोण ने पर्यावरण संरक्षण की लड़ाई को बौना और लंगड़ा कर दिया है। हमें चन्द्रमा और मंगल ग्रहों को जानने की जिज्ञासा तो है, लेकिन हम धरती मां को पूरी तरह से नहीं समझना नहीं चाहते हैं। दुनिया में मात्र 31 प्रतिशत पेड़ बचे हैं यह हमारे लिए गहन चिंता का विषय है। भारत का आंकड़ा और चौंकाने वाला है, देश में प्रति व्यक्ति पर प्रति पेड़ का औसत भी नहीं है। यूनाइटेड नेशन की रिपोर्ट के अनुसार भयावह पर्यावरण प्रदूषण और दूषित भोजन के चलते मानव ब्लड में माइक्रोप्लास्टिक का प्रवेश हो चुका है। देहरादून ग्रॉस इन्वायरमेंटल प्रोडक्ट- जीईपी देने वाला विश्व का पहला शहर है। जीईपी में जंगल की क्वालिटी, पानी का संरक्षण, वायु की गुणवत्ता और मिट्टी जैविकीकरण को बढा़ना शामिल है। डॉ. जोशी ने आयुर्वेदिक इलाज की वकालत करते हुए कहा, मैं भी स्वच्छ और स्वस्थ भारत कैंपेन का कायल हूं।
Bahut hi accha lga